संदेश

"द साबरमती रिपोर्ट्स" The Sabarmati Report | Official Trailer | Vikrant M, Raashii K, Ridhi D | Ektaa K | InCinemas Nov 15

चित्र
  "द साबरमती रिपोर्ट्स" - एक बहुप्रतीक्षित फिल्म फिल्म "द साबरमती रिपोर्ट्स" का इंतजार दर्शकों में काफी बढ़ गया है। इस फिल्म के निर्देशक प्रकाश झा ने इसे बहुत ही संवेदनशील और विचारोत्तेजक विषय पर बनाया है। यह फिल्म उन मुद्दों को उजागर करती है जो समाज के भीतर गहरे स्तर पर छुपे हुए हैं और कई बार अनदेखे रह जाते हैं। फिल्म का शीर्षक "साबरमती रिपोर्ट्स" भी अपने आप में रहस्यपूर्ण है और यह दर्शाता है कि फिल्म में समाज के कड़वे सच को दिखाने का प्रयास किया गया है। कहानी और विषयवस्तु फिल्म की कहानी गुजरात के साबरमती क्षेत्र की घटनाओं पर आधारित है, जहां कई सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। फिल्म में दिखाया गया है कि कैसे कुछ ताकतें समाज को विभाजित करने की कोशिश करती हैं और किस तरह कुछ लोग इन मुद्दों के खिलाफ खड़े होकर सच्चाई की लड़ाई लड़ते हैं। यह फिल्म जातीय और धार्मिक संघर्ष, न्याय व्यवस्था, और राजनीतिक दवाब जैसे संवेदनशील विषयों को बेबाकी से प्रस्तुत करती है। कलाकार फिल्म में मुख्य भूमिकाओं में कई शानदार कलाकार शामिल हैं, जिनकी अदाकार...

कुर्सियों के सफ़ेदपोश रहनुमाओं बताओ मुझे मैं वोट क्यों करूँ

चित्र
**************वोट क्यों*************** कुर्सियों के सफ़ेदपोश रहनुमाओं बताओ मुझे मैं वोट क्यों करूँ तुम्हारे विकास की पर्ची देखे बिना सिर्फ नाम को सपोर्ट क्यों करूँ   युवा हूँ मैं पहला मतदान है मेरा स्वयं हित या देश हित देखूँ मैं मैं काम देखूँ मैं पहचान देखूँ या गलियों में बिखरे नोट देखूं मैं मैं चेहरा देखूँ या पहरा देखूं या फिर दुश्मनों की स्पोर्ट देखूँ मैं मैं सुनूँ तुम्हारे भाषण ध्यान से या पिछले वर्षों की रिपोर्ट देखूँ मैं तुम्हारे भाषण में बहकर मैं राष्ट्रीय छवि को भला चोट क्यों करूँ कुर्सियों के सफ़ेदपोश रहनुमाओं बताओ मुझे मैं वोट क्यों करूँ   पिछली बार जब आये थे तुम मुझे याद है जो वादे कर के गए थे विकास के नाम पर और लहर के झांसे में हमको भर के गए थे सबकी उम्मीदों को तोड़ा है जो तुम्हारे पीछे गाड़ी भर के गए थे एक भी न सुनी तुमने जब कभी तुम्हारे दर पर हम मर के गए थे फिर एक बार तुम्हे ही चुन कर मैं अपने मत का भी खोट क्यों करूं कुर्सियों के सफ़ेदपोश रहनुमाओं बताओ मुझे मैं वोट क्यों करूँ   किसान मरे, जवान मरे, मज़दूर तंग, बेटी मरे, व्यापारी डरते हैं समझ नही आता के क्यों पसन्द ...

बजरंग पुनिया के पत्तन की कहानी | बजरंग पुनिया का घमंड उसे ले बैठा | घमंड का सर नीचा

चित्र
जड़ों में बैठकर आकाश हथियाने चले थे  कुछ लोग जीत का विश्वास आजमाने चले थे छोटे परिंदे भी चीर देते हैं सीना आसमान का  भूलकर औकात झूट का परचम लहराने चले थे जीत कर लौटते तो भूल जाता जमाना गुनाह तेरे फूंके कारतूस देखो दुनिया को डराने चले थे   एशियन गेम्स में मिली करारी हार के बाद बजरंग पुनिया के समर्थन में उस के हिमायती व आंदोलनजीवी फिर से एक बार सामने आ रहे हैं । लगातार बताया जा रहा है के बजरंग भारत का हीरा है और बजरंग ने भारत के लिए कुश्ती में 21 मेडल्स लाने की बात कर रहे हैं जिसमें 7 गोल्ड मैडल हैं | आपको बता दे हाल ही में बजरंग पुनिया को एशियन खेलों में पैंसठ किलो भार वर्ग में करारी हार का सामना करना पड़ा है , इसे मात्र हार कहना हार का अपमान करने जैसा होगा यह मात्र हार नही है यह उस घमंड का चकनाचूर होना कहलाएगा जिसे बजरंग पुनिया वरिष्ठ खिलाड़ी होने को लेकर पाल बैठा था ।  बजरंग पुनिया को लगता था की आंदोलन से अर्जित किए गए उनके अनुभव से किसी भी देश के खिलाड़ी को चित्त किया जा सकता है । बजरंग को लगता था के किसानों के आंदोलन में खड़े होकर सूरजमुखी का MSP दिलवाना उसको एशिय...

"हरियाणा कविता: हरियाणा की धरोहर, सांस्कृतिक गौरव | लेखक: दीप जांगड़ा"

चित्र
**************** हरियाणा***************** हरियाणा मैं जन्म दिया तनै धन धन जननी माई कण कण मैं दिखै राम मनै छंद छंद मैं कविताई हरी की भूमि कहलाया तो मिल्या नाम हरियाणा जी छैल छबीले माणस सैं आडै दूध दही का खाणा जी आये गए कि इज्जत सै म्हारा सीधा सादा बाणा जी ज्ञान की बात करैं सारे आडै बुड्ढा हो चाहे स्याणा जी होक्के पै पंचात बैठ जया रीत सदा चली आई कण कण मैं दिखै राम मनै छंद छंद मैं कविताई गंठे गैल्यां रोटी खा लयाँ ना रीस करां हम खाणे की दुनिया मैं पूरी चौधर सै किते बूझ लियो हरियाणे की खेल सै कुश्ती और कब्बडी गात तोड़ दें याणे की खाड़यां मैं म्हारे छैल गाभरु माटी कर दें स्याणे की देश विदेश मैं गाडे सैं लठ खेलां मैं सै खूब चढ़ाई कण कण मैं दिखै राम मनै छंद छंद मैं कविताई सारे दुनिया मैं नां बोल्लै सै दादा लख्मीचंद बामण का किते नही पावै दुनिया मैं तीज त्यौहार यो साम्मण का नही पहरावा मिलै किते भी बावन गज के दाम्मण का ठंडी छाँ बरगे माणस ज्यूकर पेड़ होवै सै जाम्मण का हरदम बॉर्डर पै खड़े रहैं म्हारे सब तै घणे सिपाई कण कण मैं दिखै राम मनै छंद छंद मैं कविताई सांग रागणी के किस्से...

Lapataa Hoon Mai अपने आप से बातों का एक संग्रह एक कविता लापता हूं मैं दीप जांगड़ा की कविता

चित्र
  लापता हूँ मै  हर रोज होती मेरी मुझ से लड़ाई का गवाह हूँ मै  जितना सुलझा हूँ उस से उतना जयादा बेपरवाह हूँ मै शायद मेरी गलती से ही आज इतना खपा हूँ मै  ढून्ड़ नही पाया खुद को तो क्या लापता हूँ मै  लापता हूँ मै  मै तो हमेशा से मुझ को मुझमे ही खोजा करता हूँ  क्या कहेगा जमाना मुझे इस से मै कहाँ डरता हूँ  मै को मुझ से निकालने मे जो हुई वो खता हूँ मै  ढून्ड़ नही पाया खुद को तो क्या लापता हूँ मै  लापता हूँ मै  मेरे साथ अब तो मेरी नींद भी नही है  जो है वोही तो सच है फरेब कुछ नही है  जिसकी मंजिल नही कोई वो भटकता रासता हूँ मै  ढून्ड़ नही पाया खुद को तो क्या लापता हूँ मै  लापता हूँ मै  पीता रहा हूँ दर्द कभी आँसू गैहरी प्यास मे शायद पा लूँ खुद को हूँ अब भी इसी आस मे डैह चुकी हो जो मंजिल अब तो खासता हूँ मै  ढून्ड़ नही पाया खुद को तो क्या लापता हूँ मै  लापता हूँ मै  जजबातों की भी मेरे अब तो कोई कद्र नही जिन्दा हूँ अभी मै दबा कोई मुरदा कब्र नही  अपने इरादों मे आज भी अब भी उडना चाहता हूँ मै  ढून्ड़ ...

"नारी सुरक्षा: Bharat Men Mahilaon Ke Prati Badhte Apradh - दीप जांगड़ा" Deep Jangra Ki Kavita Nahi Chahiye Vo Bharat

चित्र
************ नही चाहिए वो भारत*************** हमें नही चाहिए अब वो भारत जहां कद्र नही है नारी की जहां राजनीति का मुद्दा बनती लुटती अस्मत बेचारी की व्याकुल होकर भूख प्यास से जहां मरे आदमी सड़कों पर इज्जत में धर्म घुसा देते हैं मैं क्या बोलूं उन कडकों पर सम्मान नही जहां नारी का जहां औरत पैर की जूती है क्या जीना उस राजा का जिसके मंत्री की नीयत झूटी है जहां न्याय जोहती मरे अबला क्या कीमत है लाचारी की हमें नही चाहिए अब वो भारत जहां कद्र नही है नारी की जहां राजनीति का मुद्दा बनती लुटती अस्मत बेचारी की कहाँ गए अब अच्छे दिन वो जिनका लालच देकर आये थे अब कहां सुरक्षा है नारी की जो ख्याली पुलाव पकाए थे नही चाहिए राज़ किसी बेशक़ लावारिस कर दो घोषित ओर नही लुटवानी अस्मत ओर नही अब होना शोषित जो नौचे सीना संस्कारों का वाहवाही हो अत्याचारी की हमें नही चाहिए अब वो भारत जहां कद्र नही है नारी की जहां राजनीति का मुद्दा बनती लुटती अस्मत बेचारी की कभी यूपी कभी दिल्ली तो कभी मध्य प्रदेश कभी हरियाणा होता जाता है निर्लज भारत अब ओर बचा क्या समझाना कभी निर्भया कभी गुड़िया गीता अब संस्कृति को लूटा...

"तरक्की का राज: रुकावटों का सच और समाधान":"तरक्की क्यों रुक गई: समस्याओं और समाधानों की खोज" Tarakki Kyon Ruk Gai Hai

चित्र
  ********* तरक़्क़ी क्यों रुक गई*********** मैं पढ़ लूँ हर पहलू इस जमाने का तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई उतर जाऊं बाज़ार में सियासत के तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई सितम देख लूँ ज़ुल्म देख लूँ और बेअदबी का क़हर भी देख लूँ ज़ालिमों के दिलों में उबलता हुआ नफरतों का ज़हर भी देख लूँ दो पलू की जी लूँ जिंदगी शौक़ से तो कहूँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई मैं पढ़ लूँ हर पहलू इस जमाने का तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई उतर जाऊं बाज़ार में सियासत के तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई जवान फ़सल के जैसे अपने खेतों में मैं भी लहराना चाहता हूँ अपने हिस्से के हक़ों के लिए मैं हुकुमतों से टकराना चाहता हूँ बंजर ज़मीनों में पसीना बहा लूँ तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई मैं पढ़ लूँ हर पहलू इस जमाने का तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई उतर जाऊं बाज़ार में सियासत के तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई अब अपने दर्द का मरहम मैं ख़ुद ब ख़ुद करने लग जाऊं तो क्या कभी भूख कभी बारिश से कभी भाव कर्ज़ से मर जाऊँ तो क्या किसानों के मर्ज़ की दवा बना लूँ तो कहूँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई मैं पढ़ लूँ हर पहलू इस जमाने का तो कहुँ तरक़्क़ी क्यों रुक गई उतर जाऊं बाज़ा...