"हरियाणा कविता: हरियाणा की धरोहर, सांस्कृतिक गौरव | लेखक: दीप जांगड़ा"
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हरियाणा मैं जन्म दिया तनै
धन धन जननी माई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
हरी की भूमि कहलाया तो
मिल्या नाम हरियाणा जी
छैल छबीले माणस सैं आडै दूध
दही का खाणा जी
आये गए कि इज्जत सै म्हारा
सीधा सादा बाणा जी
ज्ञान की बात करैं सारे आडै
बुड्ढा हो चाहे स्याणा जी
होक्के पै पंचात बैठ जया
रीत सदा चली आई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
गंठे गैल्यां रोटी खा लयाँ
ना रीस करां हम खाणे की
दुनिया मैं पूरी चौधर सै
किते बूझ लियो हरियाणे की
खेल सै कुश्ती और कब्बडी
गात तोड़ दें याणे की
खाड़यां मैं म्हारे छैल
गाभरु माटी कर दें स्याणे की
देश विदेश मैं गाडे सैं लठ
खेलां मैं सै खूब चढ़ाई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
सारे दुनिया मैं नां बोल्लै
सै दादा लख्मीचंद बामण का
किते नही पावै दुनिया मैं
तीज त्यौहार यो साम्मण का
नही पहरावा मिलै किते भी
बावन गज के दाम्मण का
ठंडी छाँ बरगे माणस ज्यूकर
पेड़ होवै सै जाम्मण का
हरदम बॉर्डर पै खड़े रहैं
म्हारे सब तै घणे सिपाई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
सांग रागणी के किस्से दिन
रात घरां मैं बाजैं सै
सुण कै काया सुख पावै भीतर
की मैल नै मांजै सै
आज काल का के गाणा न्यू तै
घणे कुतरु गांजै सै
मांगे राम धनपत बाजे अर जाट
मेहर सिंह साजैं सै
आपणे भजनां मैं लख्मी नै
ब्रह्म ज्ञान की बात बताई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
दुनिया करै बड़ाई जी सब
क्यान्हे मैं झंडे गाड़े सैं
खेल जगत हो या शिक्षा हम सब
तै न्यारे ठाड़े सैं
छोरी भी म्हारी कम कोन्या
कुश्ती के दंगल पाड़े सैं
ना धन दौलत के भूखे हम बस
प्रेम प्यार के लाडे सैं
बड़े बड़े तीस मार खानां तै
खेल मैं धूल चटाई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
किसान भी म्हारे कम ना सैं
नई नई तकनीक चलावैं सै
दुनिया भर तै वैज्ञानिक
म्हारे हरियाणे मैं आवैं सै
कर कै कट्ठा ज्ञान ले ज्यां
प्रदेश मैं खेत कमावैं सै
धान की सब तै घणी फ़सल नम्बर
वन हमें बणावै सै
पशुपालन अर मछली पालन मैं
भी मार ना खाई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
आज़ादी के घणे सिपाही सुभाष
चंद के फौजी सैं
मस्ती मैं जिंदगी जिंवै सैं
सब मर्जी के मनमौजी सैं
पिल्सण आज्या बुढयां की फेर
भरी रहैं ये घोजी सैं
नई नई कोई काढ़ काढ़ दे सारे
के सारे खोजी सैं
ऊंच नीच का भेद मिलै ना सब
आपस मैं भाई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
इब टेम बदलमा आ गया रै इब
आगै देश बढ़ण लाग्या
बदलण लाग्या हरियाणा गन्द
घणा बधण लाग्या
फुकरापंण सा होण लाग गया
राह पाप की चढ़ण लाग्या
गंदे हो गे कलाकार मैल भीतर
का गीत मैं कढण लाग्या
दो च्यार जोड़ कै बात यें
साची कविता "दीप" नै गाई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
हरियाणा मैं जन्म दिया तनै
धन धन जननी माई
कण कण मैं दिखै राम मनै छंद
छंद मैं कविताई
Writer: Deep Jangra
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