"एक एहसास: हरयाणवी संस्कृती को अर्पित | दीप जांगड़ा की रचना" Haryanvi Sanskrity Ko Smarpir Kavita Ek Ehsaas


 ************एक एहसास***************

आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया
छलक आई आँखे और अँधेरा सा छा गया
मैंने पूछा क्यों इतना इतराया है आखिर क्या समझ में आया है
तो वो भी थोडा झल्लाकर एक आइना मुझे दिखा गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

फिर रुका और बोला क्यों भूल गया के क्या है तू
खुद से बड़ा किसी को समझता नहीं तो क्या खुदा है तू
मैंने पूछा आखिर हुआ क्या है बता दो माज़रा क्या है
छीन कर मेरी क़लम और किताब कुछ लिखकर बता गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

कुछ यूं लिखा उसने मेरी मोजुदगी में मैं समझ ना पाया
उसी बात को उसने कुछ इस तरह गुनगुनाया
मेरी हालत और हालात ऐ वतन मेरे सामने थे अब
कुछ अजीब से लहजे में उसने गा के भी सुना गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

पर मुझे क्या पड़ी थी आखिर था तो एक एहसास ही
मैं भी नींद में था सोया था पर था तो एक लाश ही
कुछ नहीं समझा मैं नासमझ इस समाज की तरह
और वो जाते जाते मुझे एक सबक भी सीखा गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

सबक भी गहरा था मेरा था मेरे ही लिए कहा था उसने
लाख बुराई झेली लाख दुःख उठाये हर दर्द सहा था उसने
बात अब जुबाँ पर लाया वो बोला तेरा वजूद हूँ मैं
मेरी मिटटी के दो कण उठा कर मेरे माथे लगा गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

मेरे सर को सहला कर बोला ये क्या कर रहे हो तुम
खुद मसहूर होना है हो जाओ मुझे क्यों हींन कर रहे हो तुम
पर मैंने ऐसा किया ही क्या है अब मैं भी आवेश में आया
उसने गाया एक नगमा मेरी कलम का और मुझे रुला गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

वो क्या था बतलाता हूँ मैं जितना गन्दा हुआ गाता हूँ मैं
फिर भी खुद को खुद से छुपा कुछ और ही बताता हूँ मैं
बात जो अब उसने बताई जमीन निकल गई पैरों तले से
खुद की बिगड़ी तस्वीर दिखा कर खुद को हरियाणा बता गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

अब आज अभी से उसके सामने ये कसम उठा ली मैंने
गुनहगार हूँ तेरा कैह के गर्दन कदमो में झुका ली मैंने
अब जो करूँगा तेरी मर्यादा के दायरे में रह कर #दीप
मेरे पछतावे भरे शब्दों में इतना सुनकर मुझको गले से लगा गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया
आज एक एहसास युहीं मचल कर सामने आ गया

हरयाणवी संस्कृती को अर्पित
रचना:- दीप जांगड़ा 

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