"प्रेम की अनसुनी कहानी: 'कैसी मोहब्बत निभा रहे हैं तेरे अपने'"

**********क्या कभी तुमने सोचा था***********

कैसी मोहब्बत निभा रहे हैं तेरे अपने क्या कभी तुमने सोचा था
किस रंग से रंग रहे हैं दामन तेरा क्या कभी तुमने सोचा था
क्या मजबूरी है ऐसी जैसे तेरे अपने अब तेरे नहीं हैं
तेरी झोली में जन्मे हैं तो क्या तेरे लुटेरे नहीं हैं
तू समझता है ये तो मैं भी जानता हूँ मेरे दोस्त
पर इतना उछालेंगे तेरे अपने तेरी इज्जत क्या तुमने कभी सोचा था।
तेरी मर्यादा का उल्लंघन तू देखता तो है रोज ऐसे होता
अगर पहले जैसा होता तो सोच ना तू कैसा होता
कैसे खिलते थे तेरी रागिनियों की धुन में मौसम
और आज इस कदर लाचार होगया क्या तुमने सोचा था
तेरा अंश ही लगा है तेरे वजूद को मिटटी में मिलाने को
और तू आज भी कोशिश में हैं बस प्रेम ही प्रेम फैलाने को
मैं भी कैसे समझाऊं इस जमाने को कोन मानता है यहां
इस तरह होगा तेरे उसूलों से खिलवाड़ क्या तुमने सोचा था
मेरी कलम को मैं खुद तेरे लिए तेरे अधीन कर चुका हूँ
मैं तो बस तेरे लिए जिन्दा हूँ दीप की नज़रों में मर चूका हूँ
इस मासूमियत के साथ जीकर करता भी क्या आखिर
सूर्य कवी भी रहकर चले जाएंगे क्या तुमने सोचा था
उनकी भी तो आत्मा कहीं बस्ती ही होगी तुझमे कहीं ना कहीं
फिर लौटा क्यों नहीं देते फिर से वो हीरे यहां कहीं ना कहीं
सायद फिर दुबारा कुछ रौशनी का एहसास हो इस रिश्तों के बाजार में
सरेराह नीलाम होंगे रिश्ते सड़कों पे तेरी क्या तुमने सोचा था
गहरी नींदों से उठकर बैठ जाता हूँ तेरा विचार लेकर अकेले में
देख नहीं सकता तुझको बिकते यूं किसी महफ़िल या मेले में
समझता हूँ तेरी मर्यादा मैं मुझे जीना भी तुझमे तुझसँग है
पर ऐसे नहीं लजाऊंगा तुझे बाज़ारों में क्या तुमने सोचा था
क्या तुमने सोचा था

रचना: दीप जांगड़ा
किसी के समझ में आये तो गौर करना

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