ख़ूब हैं
*******ख़ूब हैं*******
इतिहास हो चुके हैं लाखों नज़रिये
क़िस्से दीवारों में दफ़न ख़ूब हैं
मुनासिफ़ नही चाहना हर किसी को
सुना है ईश्क़ में अब धरन ख़ूब है
नुमाइशों से अब कहाँ कारोबार प्यारे
बाज़ारों में और भी रतन ख़ूब हैं
और अब कहाँ से लौटाओगे वो दिन
बहुत कहते थे तुम तो जतन ख़ूब है
कहो कहाँ से कमाई ये वादा खिलाफ़ी
हम तो समझे थे तुमपे तो धन ख़ूब है
अभी बाक़ी है ढूंढो कहीं सरपरस्ती
लोग कहतें हैं तुम्हारे वतन ख़ूब है
देख लेना कभी ख़ुद को टटोल कर
शोर काफ़ी है वहां जहां अमन ख़ूब है
फ़िर कभी ये सियासी चेहरा ना दिखाना
बेबस सी हैं ये आंहें पर बेरहम ख़ूब है
Deep Jangra
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