रोता चला गया
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काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
हँसता आया हर बार ओर फिर रोता रोता चला गया
मेरे जज्बातों की भी ख़ूब हुई है बेअदबी यारो
नक्कासी कोरे काग़ज़ की हम करते हैं शब्दों से
लिख देते हैं हाल ऐ दिल है तौबा अपनी लफ्जों से
कुछ कहते हैं पागल है कुछ लोग दीवाना कहते हैं
हम बेबस हैं लाचार नही शब्दों की धुन में रहते हैं
ग़म के काले बादल छाए मैं बोझा ढोता चला गया
काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
उलझे रहते हैं हम भी उसी कशमकश उसी झमेले में
हम भी उतने आज़ाद हैं जितने अश्व है किसी तबेले में
लंगड़े घोड़े सी कीमत अपनी इस दुनिया के बाज़ार में
अपना जीवन भी बिखरा है नोक झोंक तक़रार में
अपना दुखड़ा ख़ुद अपने ही आगे रोता चला गया
काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
कर्म से अपने हार चुका हूँ कुछ करने की तबीयत है जी
ख़्वाब जो देखे थे मैंने उन्हें पूरा करने की नीयत है जी
पर कहां रियायत है दुनिया में मुझ जैसे के करमों में
यहां तो उलझे लोग हुए हैं पाखण्डों में या धरमों में
भगवान का रक्षक बनकर धर्म का रोना रोता चला गया
काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
दीवारों में कैद हुनर है मशहूर है नुमाइश जिस्मों की
शाम ढ़ले ही होने लगती है पहचान दोस्तो किश्मों की
जिस्म दिखाओ शान बढ़ाओ सच बोलो तो गोली है
किशोर राह भटक रहे हैं तुम कहते हो जनता भोली है
लेकर आड़ हूनर की जिस्मखोरी में पागल होता चला गया
काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
हत्यारों को मोहलत है पीड़ित की व्यथा कहेगा कौन
उम्रों का इतिहास देख लो दर्द कहानी सहेगा कौन
अरमानों को मार हमारे कातिल जिंदा रह जाते हैं
हर बारी की तरह आज भी हम शमीन्दा रह जाते हैं
मोमबत्ती की लो में अपनी रोशनी खोता चला गया
काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
तुम भूले या मैं भुला क्या बात है हिजर को खाती है
वो औलादें भी पलती हैं जो बेसहारा हो जाती हैं
ख़्वाब भी पूरे होते हैं गर दिल जिद हो जीतने की
हौंसला रखो कोशिश करो अपनी तकदीरें लिखने की
कमान टूटने के ग़म में मैं बाण भी खोता चला गया
काग़ज़ के हर पन्ने पर मैं हर्फ़ पिरौता चला गया
दीप जांगडा
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