आंख यें गरीबां की
रै उफणदे समुंदर भी कम पड़ै हैं जब आंख यें गरीबां की रै नम पड़ै हैं विकास का रै नाम लेक़ै वोट मांग गे रै दलाल वैं विकासां के इब कड़ै हैं
रै ग़रीब मज़दूर छोड़े मुश्किल मैं
महंगाई की सै मार नही खाण नै जुड़ै
दिन की कमाई खोज्या तेल तिल मैं
दुनिया की सारी बात झूट होवैं सैं
जब तेरा हर पास्सा मजबूत होवै सै
गरीबा की बहू तो होवै भाभी सब की
रै बस भागां मैं चोगर्दे तै जूत होवै सै
जीत की जीदां मैं थे लिकडे मुसाफ़िर
जो घर तै रै हार का समान ल्याए थे
बाट देखै था रै घरां सारा कुणबा खड्या
वैं जवान रै तिरंगयां मैं ज्यान ल्याए थे
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