वायदे

 ********वायदे*********

जर्जर कश्ती, घायल यात्री
टूटी पतवारें दिखती हैं
ऊंची लाख दुकानें उनकी
खंडहर दीवारें दिखती हैं
घर पक्के हैं दिल हल्के
रिश्तों की तारें दिखती हैं
तुम कहते हो पाखंड है
पर कलम सच्चाई लिखती है
गुर्दे की पथरी निकल रही
और प्रसव साधारण होते है
ना आंख लगाए कभी सारथी
दुर्घटना के निवारण होते हैं
सड़कों के गढ्ढे अच्छे हैं
वो बाकायदे कहते हैं
जब होना है तब होगा
तबतक तो फायदे कहते हैं
जब होना है तब होगा
तबतक तो फायदे कहते हैं
रोजगार नहीं है, चाय बेच लो !
देश हम सबकी संपत्ति है
तुम खूब पकौड़े तल के खाओ
हम क्या खाएं , क्यों आपत्ति है ?
खतरे में रुपया आ जाए तो
अजी कुछ भी बेचें , विपत्ति है !
तुम सपने देखो, हम अपना देखें
परिवार तुम्हारे हैं, अपने कहां दंपति है ?
जेब में धेला बचा नही
डिजिटल होने का दावा चलता
अन्न के दर्शन दुर्लभ हैं
कहने को हरदम मावा चलता
अच्छे दिन आने वाले हैं
आठ साल से वायदे कहते हैं
जब होना है तब होगा
तबतक तो फायदे कहते हैं
जब होना है तब होगा
तबतक तो फायदे कहते हैं
सब्जियां सुनार भी बेचेंगे
कभी तौले में कभी मासे में
खूब धांधली बाकी है
कभी थोड़े में कभी खासे में
गेहूं में कंकड़ मिलते हैं
फिर चुना मिले पताशे में
कठपुतली बन के नाचें सारे
खूब आनंद मिले तमाशे में
आटा ठोस से तरल हो चला
आलू से सोना निकल रहा है
विद्युत,सफर , जल सभी मुफ्त में
बोतल पे बोतल उछल रहा है
आवाज उठे तो उसे दबा दो
सरकारी कायदे कहते हैं
जब होना है तब होगा
तबतक तो फायदे कहते हैं
जब होना है तब होगा
तबतक तो फायदे कहते हैं
दीप जांगड़ा

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