मौसमी दीवाने

मुहोब्बत के घर आबादियों की चाहत में हैं शहर के मौसमी दीवाने इश्तेहार कर रहे हैं

दीवारें क़ैद हैं आज तो अपने ही आंगन में
शमा बुझी है और परवाने तक़रार कर रहे हैं
युहीं गुजरना हुआ नफरतों के गलियारों से
इस दौर में भी वही घराने सरकार कर रहे हैं
बेच दिया जमीरों को बहुत ही ऊंचे दामों में
सुना है अब वो अनजाने इनकार कर रहे हैं
ये जो कहते हैं ना दौलत में इत्मिनान खूब है
वो नींदों के लिए मयखाने इख़्तियार कर रहे हैं
कहां गुज़र होता है क़लम थाम लेने से "दीप"
शब्दों के मुसाफ़िर हैं अफ़साने तैयार कर रहे हैं

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

Lapataa Hoon Mai अपने आप से बातों का एक संग्रह एक कविता लापता हूं मैं दीप जांगड़ा की कविता

ऑनलाइन पैसे कमाने के शानदार तरीके: घर बैठे इंटरनेट से इनकम के टिप्स: Ghar Baithe Paise Kamaane Ke Achook Upay Hindi Men

"अंतर्मन की गहराइयों में: सत्य, अच्छाई और जीवन के विचार" एक कविता के माध्यम से " मैं क्या हूँ" Mai Kya Hoon