ईश्क़ मैं आराम कडै है

चैन दिन मैं ना नींद रात की ओर ईश्क़ मैं आराम कडै है जित मुहोब्बतां के फ़क़ीर हों आज काल इसे गाम कडै है

नफ़रत की तिसाई सै दुनिया
इब आँख्यां के जाम कडै है
हर घऱ मैं आज़ादी के रौले
पहल्यां आले ग़ुलाम कडै है
ईश्क़ की रगां मैं नफरत बहै
इबादत आले काम कडै है
चूल्हे ना हारे, बैल ना गाड़ी
दुफैरी मैं तपते चाम कडै है
धोल कपड़िये हैं चिकणे घड़े
वैं दुनिया मैं राजे राम कडै है
हुक्के चोगरदै अबोधे से पाँवैं
रै म्हारे पंचैती तमाम कडै है
हाँसी मखोलां नै बख़त कोन्या
शर्म लिहाजां के नाम कडै है
ताली बटोरण नै चीर उतरैं
इज्जतां के इब दाम कडै है
प्यारे सैं जो वो जी तै ऐ मारैं
यारी मैं इब वैं सलाम कडै है
मर्ज़ हो किसे का राजा ए दोषी
हकूमती हक़ मैं अवाम कडै है
परिवाराँ गेल्याँ ख़ुशी ख़ूब थी
ना तड़के रहे अर शाम कडै है
अर गां भी तो माँ सै थारी रैए
थम ऐ हो इब घनश्याम कडै है
पोह माह के पाले नै शेक दे
अलाव कीत सै घाम कडै है
जीतां की ज़िद परदेश ल्याई
वतन मैं मिलै थे मुक़ाम कडै है
लिखण की चाह मैं महशूर तू
तेरे शब्द भला बदनाम कडै है
अर तू शब्द मुसाफ़िर है दीपे
लोग जाणै, तू गुमनाम कडै है

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